जो इंसान अंदर से जितना डरा होता है वह बाहर से उतना ही बड़ा अहंकारी होता। जो इंसान अंदर से जितना हल्का होता है, वह बाहर लोगों को उतना ही गहरा और ज्ञानी जताने की नकली कोशिश करता रहता है। दरअसल यह लोगों के आदत में शुमार हो गई है कि अपने भीतर के भय को छुपाने के लिए बाहर के जगत में चिल्ला-चिल्ला कर लोगों के बीच धारणा को गढ़ने की कोशिश में लगा रहता कि वह सर्वशक्तिमान है। ऐसे शख्श अपनी लकीर को बड़ी साबित करने के लिए अक्सर दूसरों की लकीर छोटी करने में, उसे बताने और जताने की कोशिश में जीवन गवां देता है। यह सबकुछ वह व्यर्थ ही तो कर रहा होता है। भीतर एक आत्मा है। वही तुम हो। वही केवल मात्र तुम्हारी पहचान है। जिसके दायरे को बढ़ा कर, गहराई तक पहुँचाकर उसे परमसिद्ध परमात्मा बनाना होता है। लेकिन असुरक्षित भाव में जीने वाला कोई इंसान इस विचार से कैसे आत्मा का अवलोकन कर पाएगा।
मनुष्य की परम सफलता अध्यात्म के दर्शन को प्राप्त करना होता है। भीतर की चेतना को प्रकाशित करना होता है। इसके अलावा बाहरी दुनिया में कुछ साबित करना या हासिल करना व्यर्थ है। फिर इंसान व्यर्थता के पीछे क्यों निरंतर भागने में अपने मूल को भूल रहा है।
दिखावे की सफलता, दर्द, अवसाद, अहंकार, आत्महत्या को प्राप्त करना है तो खूब भागो। दिन-रात भागो। एक पल को भी न ठहरो। जितना भागोगे उतना हासिल करोगे।
लेकिन अगर परमात्मा को प्राप्त करना चाहते हो। आनंद से भर जाना चाहते हो तो अभी के अभी ठहर जाओ। जितना ठहराव लाओगे तुम्हारी चेतना में उतनी ही गहरी आध्यत्म की रोशनी होगी।
लेकिन ये सब आसान नहीं है। उसके लिए तुम्हें अपने भीतर से असुरक्षा की भावना को मिटाना होगा। तुम जो हो, जैसी तुम्हारी प्रकृति है। वह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा। क्योंकि उसको जितना झुठलाने की कोशिश करोगे। उतना ही मनुष्य से पशु बनते चले जाओगे। वह तुम्हें वहशीपन से भर देगा। और धीरे-धीरे फ्रस्ट्रेशन के शीर्ष तक पहुँचाकर डिप्रेशन से भर देगा।
तुम्हें हर पल यह ध्यान रखना होगा कि वो असुरक्षित अहंकार तुम्हारा नहीं है। वह तुम्हारे भीतर एक काल्पनिक डर बनाए हुए है। जिसकी जड़ें इतनी गहरी हो चुकी है कि उसे तुम बमुश्किल ही रोक पाओगे। असुरक्षा की भावना इंसान को डरपोक बना देता है। एक डरपोक अपनी कायरता को छिपाने के लिए अहंकार का सहयोग लेता है। और अहंकार विनाश के पहले पड़ाव की शुरुआत करता है। इसलिए अपनी श्रेष्ठता को साबित करने की कोशिश करना स्वयं को धोखा देना होता है। और अपने आप को श्रेठ मार्ग की ओर बढ़ाना परम आनंद के पास पहुंचता है।