Saturday, February 3, 2018

'अंतर्धार्मिक प्रेम के शिकार' अंकित से माफ़ीनामा पत्र ।

प्रिय अंकित,

ज़रा सी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ कि तुम्हारे मरणोपरांत तुम्हें माफ़ीनामा लिख सकूँ। लेकिन फिर भी हिम्मत जुटा कर लिख रहा हूँ जिसके ज़रिये तुम से माफी मांग पाऊँ। तुम्हारे चले जाने के अपराधबोध के कशमकश में अजीबोगरीब घुटन महसूस कर रहा हूँ। तुमसे माफी माँगने के लिए बेचैन हूँ। माफ़ी इसलिए माँग रहा हूँ, क्योंकि हमने तुम्हें एक ऐसा समाज दिया जहाँ मोहब्बत करने की स्वतंत्रता तक नहीं है। मानवनिर्मित धर्म और जाति के छद्म गुरुर ने प्राकृतिक प्रेम के स्नेह को बर्दाश्त नहीं कर सका। इसलिए धार्मिकता और जातीयता के इस छद्म गौरव ने आज तुम्हें भी लील लिया। दरअसल अंकित तुम जैसे कई लोग इश्क़ के ज़रिए इस वर्गीकृत समाज को चुनौती देता है। किन्तु धर्म और जाति का झूठा दंभकारी मानसिकता तुम जैसे निरीह प्रेम के उपासकों को मार देता है। अंकित यह हत्या केवल तुम्हारी नहीं हुई है, बल्कि यह हत्या उस स्वप्न की है जो तुम जैसे अनेकों युवा जाति और धर्म के झूठे आडंबर के खांचों से बाहर निकल कर अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाह करते है। व्यथित इस बात को लेकर भी हूँ कि क्या ऐसी मज़हबी मगरूरियत हमारे समाज के भीतर सहिष्णुता और एकता को पनपने देगी। क्या यह संभव है कि मोहब्बत करने से पहले प्रेमी-प्रेयसी जाति,धर्म,गोत्र आदि पर आपसी तालमेल कर मोहब्बत की नुमाईश कर सके। मोहब्बत तो केवल वक़्त की साज़िश है जो न जाने कब हमारे भीतर एक अपनेपन का एहसास भर देती है और हमें पता भी नहीं चलता। उस साज़िश का अंतिम परिणाम अपने मोहब्बत  को पाने के जुनून में तब्दील हो जाता है। लेकिन जाने क्यूँ मोहब्बत का यह निरीह एहसास उस मगरूरियत समाज को खटकने लगता है। जिसकी कीमत अंकित तुम्हारे जैसे युवा को अपने मौत से चुकाना पड़ता है। जब से तुम्हारे मौत के कारण को जाना हूँ तब से स्तब्ध हो गया हूँ। ज़हन में तुम्हारे हत्या की काल्पनिक तस्वीर निरंतर परेशान कर रही है। तुम्हारे माँ की हालात को देख भावुकता से बेचैन हो गया हूँ। यह सोचकर रोंगटे खड़े हो रहे है कि उस वक़्त उस माँ की स्थिति क्या होगी। उनके जीवन का वह भयावह क्षण कितनी अतिरेकपूर्ण उनके जीवन के उम्मीद को खत्म कर रहा होगा।
अंकित हम तुम्हारे गुनहगार है। हमने तुम्हें वो समाज नहीं दिया जहाँ तुम अपनी मर्ज़ी से इश्क़ कर सको। लेकिन सीने पर इस अपराधबोध के साथ भी गुज़ारिश करता हूँ कि तुम अगले जन्म में आकर इस धरती पर मोहब्बत के एक नए इबारत को लिखना। जिससे समाज में प्रेम के उपासकों का एतबार बना रहे। इस पृथ्वी पर प्रेम की बहुत कमी है अंकित। और इस प्रेम को तुम जैसे हिम्मती लोग ही पृथ्वी पर भर सकते है। क्योंकि मोहब्बत करने वाला बागी होता है और वो समाज के विमूढ़ परंपरा को चुनौती देकर उस घृणित मानसिकता के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत करता है। तुम तो जीवित ही मोहब्बत फैलाने वाले एक सफ़ल अनुयायी साबित हुए। अगले जन्म तुम फिर मोहब्बत के अनुयायी बनकर ही आना। हमलोग कोशिश करेंगे कि शायद कुछ प्रतिशत इस घृणित सोच को कम कर सके।

तुम्हें एक स्वतंत्र समाज न देने वाला एक अपराधबोधि।।

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