Tuesday, October 13, 2020

आध्यात्म से ही अकेलापन और डिप्रेशन को हराया जा सकता है!!

अकेलापन'... यह महज़ एक छोटा सा शब्द मात्र ही तो है। लेकिन यह लोगों की ज़िंदगी को ख़त्म करने के लिए काफी है। किसी भी इंसान को दर्द की त्रासदी से डिप्रेशन में भेजने के लिए मुकम्मल है। और दुर्भाग्य से यह आज विश्व की बड़ी आबादी के जीवन में इस शब्द ने ऐसी जगह बना ली है कि उनका जीवन दर्द के बवंडर से भर चुका है। कइयों की जिंदगी ख़त्म कर दी है। अकेलापन ज़िंदगी में आहिस्ता-आहिस्ता  आता है और ज़रा सा भी अपने आने का इल्म नहीं होने देता है। यह सबसे पहले आपको अपने ही लोगों से दूर करता जाता है। और अंत में सभी से दूर करता हुआ आपको ऐसे पड़ाव पर लाकर खड़ा कर देता है। जहाँ लगता है कि अगर आपने खुद को ख़त्म कर खुद से दूर नहीं किया तो यह दर्द आपको जीने नहीं देगा। अकेलापन दिमाग पर ऐसा हावी होता है कि लगता है मानो खुद की नज़रों में अपनी ही ज़िंदगी बोझिल लगने लगती है। कुछ भी पाने की उम्मीद ख़त्म हो जाती। ज़िंदगी इतनी नीरस बन जाती है कि सपने-अरमान की कोई जगह नहीं बचती है। दिमाग से सोचने की क्षमता, आँखों से नींद, हृदय से प्यार, अपनों से दुलार, चुनौतियों से लड़ने की शक्ति, संघर्ष की स्वीकार्यता, सब कुछ ख़त्म कर देता है। अकेलापन का जन्म स्वतः प्राकृतिक तौर पर नहीं होता है बल्कि यह किसी तरह की असफ़लता अथवा धोखे आदि के कोख से होता है। मेहनत की कमी से नाक़ामियाँ ऐसे हावी होती है कि इंसान अकेला-अकेला रहना शुरू कर देता है। उसे लोगों से डर लगने लगता है कि उसे कोई समझ नहीं पाएगा। उसे कहीं भी समझा नहीं जाएगा। वह खुद को बचाने के लिये खुद के भीतर अपनी नाकामियों को दबाने की जद्दोजहद करता रहता है। वो नाक़ामियाँ उसे अकेलापन के कुएं में धकेलती है। जहाँ सिर्फ अवसाद होता है। और वही अवसाद उसके दिलोदिमाग पर ऐसा हावी होता है कि वो ज़िंदगी को जीने से ज़्यादा मौत को गले लगाना सरल मानता है। अकेलापन का अवसाद रात के समय इंसान पर ज़्यादा हावी होता है। और उसे असहाय एवं लाचारगी का बोध कराता है।
आज हमारे आसपास में ज़्यादातर लोग अकेलापन के शिकार हैं। वह लोगों के बीच ज़बरदस्ती रहने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया पर खुद को सबसे खुश और खुशनसीब दिखाने की मेहनत करते हैं। खुद ऐसे-ऐसे मोटिवेशनल कोट्स और विचार साझा करते हैं कि कोई भी अगर उसे पढ़ेगा तो यही लगेगा कि वाह, यह कितना सकारात्मक और सुलझा हुआ व्यक्ति है। इसकी ज़िंदगी में तो कोई दर्द, ग़म या अकेलापन की जगह ही नहीं है। जबकि उस इंसान से जब उसकी ज़िंदगी की सच्चाई सुनेंगे तो आपको पता लगेगा कि वो भले ही लोगों को मोटिवेशनल बातें शेयर कर के खुद को सकारात्मक दिखाने की कोशिश करता है। किंतु सच्चाई यह है कि उन मोटिवेशनल कोट्स के ज़रिए वह खुद को मोटिवेट करने की कोशिश करता है। और असल मायनों में उस इंसान को वाकई में सबसे ज़्यादा मोटिवेशन की ज़रूरत है। आप अपने आसपास के लोगों की ज़िंदगी में एक दफ़ा झाँकने की कोशिश कीजिये। उनके सोशल मीडिया हैंडल्स, उनके व्हाट्सएप स्टेटस को गौर से देखने की कोशिश कीजिये। आप पाएंगे कि मोटिवेशनल कोट्स व्हाट्सएप पर स्टेटस में लगाते हैं और कुछ पल के बाद उसे डिलीट कर देते हैं। अगले पल फिर कोई और मोटिवेशनल कोट्स लगाते हैं फिर कुछ पलों बाद हटा लेते हैं। यह प्रक्रिया क्रमशः चलती रहती है। 
दरअसल अकेलापन के शिकार और अवसादग्रस्त लोग अपने सोशल मीडिया और लोगों के बीच मोटिवेशनल बातें कहकर खुद को तो मोटिवेट करने की कोशिश करते ही हैं। साथ ही वो इन जगहों पर अपने अकेलापन को भूलने के लिए एस्केप ढूंढने की भी कोशिश करते हैं। वो बंद कमरे में अकेला बैठ नहीं सकते हैं। अगर बैठने की कोशिश भी की तो वो अकेलापन ऐसा डराता है कि इंसान विचलित और भयभीत होकर अपने आप को मोबाइल अथवा किसी और काम में व्यस्त रखने की कोशिश करता है। आपने ग़ौर किया कि आखिर इस लॉकडाउन ने क्यों लोगों को डिप्रेशन में भेज दिया। इसी समय सबसे ज़्यादा खुदकुशी क्यों हुई। क्यों इसने लोगों की ज़िंदगी बदल कर रख दी। क्योंकि आंतरिक तौर पर अकेला इंसान भौतिक तौर के अकेलापन को झेल नहीं पाया। उस अकेलापन ने उसे बंद कमरे के अंदर तोड़ कर रख दिया। और जो लोग बच गए उनमें से ज़्यादातर डिप्रेशन से घिर गए।
अकेलापन अथवा डिप्रेशन कभी भी इंसान के फाइनेंसियल स्टेटस को देखकर नहीं आता है। ना ही पावरफुल स्टेटस को देखकर। अगर ऐसा होता तो अमीर लोग, बड़े अधिकारी, नेतागण, एक सुप्रसिद्ध अभिनेता कभी खुदकुशी ही नहीं करते। दरअसल लोगों को लगता है कि अगर उसने ज़िंदगी में किसी मुकाम को हासिल कर लिया तो वह बहुत खुश और संतुष्ट रहेगा। उसकी उपलब्धि उसे इतनी खुशी दे देगी कि उसके आसपास कभी अकेलापन और डिप्रेशन भटकेगा तक नहीं। अगर सचमुच ऐसा होता तो आए दिन किसी IAS/IPS या बड़े अधिकारियों की खुदकुशी की ख़बर हमें नहीं मिलती। भारत के सबसे कठिन परीक्षा को पास करने के लिए इंसान अपनी दिन-रात की पूरी मेहनत लगा देता है। तमाम चुनातियों और संघर्षों की विपरीत परिस्थितियों को झेल कर इंसान बमुश्किल उस परीक्षा को पास कर अधिकारी बनता है। फिर भी उसे खुदकुशी क्यों करनी पड़ती है। उसे खुश और संतुष्ट रहना चाहिए कि जिस परीक्षा को उसने पास किया है वह समाज में नहीं बल्कि पूरे इलाके में सम्मान दिलाता है। उस पद की अपनी ठसक है। बड़े-बड़े पद पर आसीन राजनेताओं की भी खुदकुशी की ख़बर आती है। बीते दिनों एक राज्यपाल ने भी खुदकुशी कर ली। उसके अलावा खूब पैसेवाले भी खुदकुशी करते हैं। तो आखिर इस खुदकुशी की वजह क्या है। सबकुछ मिल जाने के बाद भी खुदकुशी का कारण क्या है। 
दअरसल इंसान आजीवन इस भूल में जीता चला जाता है कि ये भौतिक और सामाजिक उपलब्धियाँ ही उसे खुशी और संतुष्टि दे सकती है। जिसकी वज़ह से वह उसी होड़ में भागता रहता है। जिसे वो उपलब्धियाँ नहीं मिलती वो उसकी वजह से डिप्रेशन में चला जाता है और जिसे वो मिल जाती है वो उसे पाकर भी खुश और संतुष्ट नहीं हो पाता है। इस स्थिति की सबसे बड़ी वज़ह है उस इंसान के भीतर आध्यात्म की कमी। दरअसल इंसान यह समझ ही नहीं पाता है जीवन रूपी इस यात्रा में ये सब महज़ छोटे-छोटे पड़ाव हैं। पैसा, पावर, शोहरत आदि की अवस्था भौतिक है। यह आंतरिक नहीं है। और भौतिक अवस्था कभी भी आपको लम्बे समय तक अथवा आजीवन खुशी और संतुष्टि नहीं दे सकती है। इसकी खुशियाँ क्षणिक है। ये अवस्थाएं आपको भौतिक तौर पर सारी सुख-सुविधाएं दे सकती है। किंतु आंतरिक सुख-सुविधाएं कुछ पल के लिए ही प्राप्त हो सकता है। जीवन रूपी यात्रा के मार्ग में यह महज़ पड़ाव है। जबकि उस यात्रा को सुगम और सुख से चलाने के लिए आध्यात्मिक ईंधन की आवश्यकता होती है। यहाँ मेरा आध्यात्मिक का तात्पर्य वैरागी बनना या गृहस्थ का जीवन त्याग कर हिमालय की तराई में जाकर ध्यानमग्न होना नहीं है। मेरे अनुसार आध्यात्म का अर्थ है स्वयं की आत्मा का अध्ययन करना और यह समझने की कोशिश करना कि आत्मा और उसकी आंतरिक चेतना आपसे क्या चाह रही है। मसलन भौतिक सुविधाओं का भोग करते हुए भी आध्यात्मिक बनकर आध्यात्म की राह को चुना जा सकता है। मेरे अनुसार आध्यात्मिक का अर्थ है अपने भीतर की दुनिया में ध्यानमग्न होकर यात्रा करना। अपने विचारों की समझ और मानसिक पटल की गहराई में जाकर सकारात्मक विचारों को जन्म देते हुए उसके बीच भ्रमणशील रहना। वहीं असली सुकून और संतुष्टि है। उस मार्ग की गतिशीलता में इतनी शक्ति है कि आप ज़िंदगी की बड़ी से बड़ी चुनौतियां, नाकामियां और संघर्षों से निपटने में सक्षम बन जाएंगे। आप यह समझने की कोशिश कीजिये कि जब आपके भीतर परेशानी चल रही होती है अथवा आप अवसादग्रस्त होते हैं। तो वो बेचैनी आपके भीतर होती है। आपके शरीर के बाहरी हिस्से पर अथवा आपके आसपास की चीज़ों पर इसका कोई असर या बदलाव नहीं मालूम पड़ता है। ठीक उसी तरह आपको अपने भीतर के अकेलापन या डिप्रेशन से लड़ने के लिए आपको अपने भीतर की सकारात्मक शक्तियों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। और भीतर की सकारात्मक शक्तियों को केवल आध्यात्म के ज़रिए ही पाया जा सकता है। इसलिए ज़िंदगी की तमाम भाग-दौड़ के बीच खुद के लिए समय निकाल कर आध्यात्म की राह ज़रूर चुनें। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि आप इस जीवन रूपी यात्रा के बीच आने वाली हर चुनौतियों और संघर्षों से लड़ सकते हैं। अकेलापन और डिप्रेशन आपके आसपास तक नहीं भटकेगा।

1 comment:

  1. भौतिक जगत की वासना को उपासना में परिवर्तित करने का यह एक उत्तम उपाय है। प्रकाशपुंज की भाँति जनों के मन से अंधकार हर, प्रकाश का संचार करने का सर्वोत्तम उपाय है अपने आंतरिक जगत को जानना और उसमें भ्रमण कर अपनी आत्मा के अस्तित्व को खोजना। बहुत ही सुंदर और सुलझी हुई लेखनी है आपकी। 👌👌🙏🏼🙏🏼❤️❤️

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