आए दिन मल्टीपलेक्स और थियेटरों से राष्ट्र गाण बजने पर न खड़े होने के मामले अाता रहता है। आजकल एक विडियो वायरल है कि मुंबई के एक थिएटर में राष्ट्रगान बजने के दौरान खड़े नहीं होने के चलते पांच मुस्लिम दर्शकों को कथित तौर पर बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया गया।लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक तौर पर हमारा संविधान और कानून हमें ऐसा कृत्य करने की अनुमति देता है ?
*हमारे देश के कानून 'राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971'के सेक्शन तीन में लिखा है, ‘जान-बूझ कर जो कोई भी किसी को भारत का राष्ट्रगान गाने से रोकने की कोशिश करेगा या इसे गा रहे किसी समूह को किसी भी तरह से बाधा पहुंचाएगा, उसे तीन साल तक कैद की सजा दी जा सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है। दोनों सजाएं एक साथ भी दी जा सकती हैं।इस कानून में राष्ट्रगान गाने में बाधा पहुंचाने पर सजा की बात करने तक ही सीमित है। इसमें राष्ट्रगान गाने या बजाने के दौरान बैठे रहने या खड़े होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
*इस मसले पर भारत सरकार ने 5 जनवरी, 2015 को एक आदेश जारी किया जिसमें लिखा है:- ‘जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाए, वहां मौजूद लोगों को सावधान मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए। अगर किसी न्यूजरील, डॉक्युमेंट्री या फिल्म में राष्ट्रगान बजाया जाता है तो दर्शकों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे खड़े हो जाएं, क्योंकि इससे राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाने के बजाय फिल्म देखने में बाधा होगी और अव्यवस्था भी फैलेगी।’
*इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में दो जजों की बेंच ने ऑर्डर दिया था।मुद्दा था-केरल के एक स्कूल ने राष्ट्रगान नहीं गाने के आरोप में तीन बच्चों को निकाल दिया था। हालांकि,वे बच्चे राष्ट्रगान के दौरान खड़े थे। उन्होंने गाया
*इस मसले पर भारत सरकार ने 5 जनवरी, 2015 को एक आदेश जारी किया जिसमें लिखा है:- ‘जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाए, वहां मौजूद लोगों को सावधान मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए। अगर किसी न्यूजरील, डॉक्युमेंट्री या फिल्म में राष्ट्रगान बजाया जाता है तो दर्शकों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे खड़े हो जाएं, क्योंकि इससे राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाने के बजाय फिल्म देखने में बाधा होगी और अव्यवस्था भी फैलेगी।’
*इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में दो जजों की बेंच ने ऑर्डर दिया था।मुद्दा था-केरल के एक स्कूल ने राष्ट्रगान नहीं गाने के आरोप में तीन बच्चों को निकाल दिया था। हालांकि,वे बच्चे राष्ट्रगान के दौरान खड़े थे। उन्होंने गाया
इसलिए नहीं था क्योंकि उनका मजहब भगवान को छोड़ कर किसी की वंदना करने की इजाजत नहीं देता।
सुप्रीम कोर्ट ने इन बच्चों को वापस लेने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है कि किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य किया जाए। जब कोई व्यक्ति सम्मानपूर्वक खड़ा है और गा नहीं रहा है तो यह राष्ट्रगान के अपमान की श्रेणी में भी नहीं आता। हालांकि, कोर्ट ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के दौरान खड़ा नहीं हो तो क्या यह अपमान माना जाएगा? फैसले के अंत में कहा गया था, ‘हमारा धर्म सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है, हमारा दर्शन, हमारा संविधान भी यही पाठ पढ़ाता है। इस भावना को कमजोर न पड़ने दें।’
*इस मामले पर मद्रास के एक वकील ने याचिका दी थी। इसमें मांग की गई कि सिनेमा हॉल मालिकों को फिल्म दिखाते वक्त राष्ट्रगान बजाए जाने से मना किया जाए। तर्क दिया गया कि इस दौरान कुछ लोग ही खड़े होते हैं और ज्यादातर लोग बैठे रह कर राष्ट्रगान का अपमान करते हैं। हाईकोर्ट ने कहा, ‘जिसे अपमान बताया जा रहा है वह भ्रामक है। और राष्ट्रगान बजाने की इजाजत भारत सरकार का आदेश देता है।’ कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी।
बहरहाल हमारा कानून और संविधान किसी को राष्ट्र गाण में खड़े होने और गाने के लिए जबरन बाध्य नहीं करता। गौरतलब यह है कि जब भारत सरकार ने भी यह आदेश जारी कर दिया कि 'अगर किसी न्यूजरील, डॉक्युमेंट्री या फिल्म में राष्ट्रगान बजाया जाता है तो दर्शकों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे खड़े हो जाएं'। तब फिर ये तथाकथित लोग जो छद्म राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े घूम रहे है,ये कैसे किसी के राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति पर सवालिया निशान खड़े कर उसे जलील कर सकते है। गैर कानूनी कृत्य तो ये तथाकथित देशभक्त लोग कर रहे है,उन लोगों के 'मूल अधिकार' का हनन कर। हमारा संविधान हमें अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जिवन जीने और एकान्तता के अधिकार की स्वतंत्रता प्रदान करता है।तो अब बड़ा प्रश्न यह उठता है कि 'क्या कुछ तथाकथित देशभक्त आम लोगों के मूल अधिकार का हनन कर सकते है ?
बहरहाल हमारा कानून और संविधान किसी को राष्ट्र गाण में खड़े होने और गाने के लिए जबरन बाध्य नहीं करता। गौरतलब यह है कि जब भारत सरकार ने भी यह आदेश जारी कर दिया कि 'अगर किसी न्यूजरील, डॉक्युमेंट्री या फिल्म में राष्ट्रगान बजाया जाता है तो दर्शकों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे खड़े हो जाएं'। तब फिर ये तथाकथित लोग जो छद्म राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े घूम रहे है,ये कैसे किसी के राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति पर सवालिया निशान खड़े कर उसे जलील कर सकते है। गैर कानूनी कृत्य तो ये तथाकथित देशभक्त लोग कर रहे है,उन लोगों के 'मूल अधिकार' का हनन कर। हमारा संविधान हमें अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जिवन जीने और एकान्तता के अधिकार की स्वतंत्रता प्रदान करता है।तो अब बड़ा प्रश्न यह उठता है कि 'क्या कुछ तथाकथित देशभक्त आम लोगों के मूल अधिकार का हनन कर सकते है ?
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