बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों पर विशेष करके लड़कियों पर हस्तास्त्र हमला करना महज़ एक अराजकता को दबाने की प्रशासनिक कार्यवाही भर नहीं है बल्कि वह असल मायनों में फांसीवादी के निरंतर विस्तृत होते दायरों का उत्सव है। याद रखें फांसीवाद सर्वप्रथम लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करता है और उसके उपरांत मानवीय अनुशीलन को आतुरतापूर्वक खा जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमतियों को डंडे के दम पर ख़त्म नहीं किया जाता है। बल्कि उस डंडे की चोट एक अराजक व निर्भीक कौम को जन्म देती है जिससे लोकतांत्रिक शुचिता कमज़ोर पड़ती है किंतु जनसंवेदना अथाह प्राप्त होता है। नवरात्र का दिन चल रहा है और सनातनी मंत्र का उच्चारण भी अक्सर किया जाता है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता विराजते है। फिर अचानक इस माँ दुर्गा वाले नवरात्रि माह में महिलाओं पर संवेदनहीन हमला करना कितना उत्साहवर्धक है समाज के लिए। शर्म तो इस बात का है कि उन लड़कियों पर हमला PAC के पुरुष जवान ने महिला छात्रावास में घुस कर किया है। इसे एक संवैधानिक व लोकतांत्रिक देश में अराजकता का नंगा नाच कहा जा सकता है। महिला छात्रों के लिंगभेदी उन्मूलन का प्रतिवाद महिला छात्रों के प्रतिकूल बन गया। परंतु निश्चित रूप से यह प्रशासनिक हमला आंदोलन को और तठस्थ बना गयी। यह प्रदर्शन महिलाओं के अस्मिता व विश्वविद्यालय के समाजिक समानता को लेकर है मसलन इस पर वामपंथी, कांग्रेसी अथवा भाजपाई के छात्र राजनीति की दृष्टि से निर्णय लेने से बचें। विचार कर लें, इंसान के अस्तित्व व सम्मान से अधिक दल का अभिवंदन संभव नहीं है। यह प्रदर्शन एक महिला होने के बुनियादी सुविधाओं के नैतिक अधिकार का मांग है। यह महिला छात्र के आत्मसम्मान का नैसर्गिक मांग है। यह लिंगभेदी सभ्यता को नष्ट करने का शंखनाद है। महिला छात्रावास के खिड़कियों के सामने पुरुषों के द्वारा अश्लील नुमाईश की बेशर्म घटनाओं का भी विरोध प्रदर्शन है। छोटे कर्मी से लेकर बड़े अधिकारी व छात्र तक विश्वविद्यालय की छात्रा एवं उनके छात्रवास के समक्ष ऐसी हरकत करते है जिसे एक पिता अथवा एक परिवार के लिए नैतिक शर्म का सबब बन जाएगा कि हमने अपने घर में एक बच्ची को क्यों जन्म लेने दिया,जब हम उसे सामाजिक सम्मान नहीं दे सकते, जब हम उसके लिये एक सुरक्षित समाज नहीं दे सकते है। सरेआम लड़कियों के ऊपर लाठी,डंडा से हमला कराया गया। रबर के गोले दागे गए। और हद तो तब हो गया जब इस भयानक हमला के बाद सारी रात हॉस्टल की बिजली काट दी गयी। आप कल्पना करें। आज यह एक विश्वविद्यालय में किसी दूसरे की बहन-बेटियों के साथ घटा है लेकिन कल को इस बात की क्या गारंटी है कि यह घटना आपके परिवार के किसी बच्ची के साथ किसी संस्थान में नहीं घटेगी। किन्तु इस बात की गारंटी है कि यदि आज आप ऐसी व्यवस्था व ऐसे कलुषित मानसिकता वाले समाज का प्रतिकार अथवा बहिष्कार करते है तो शायद आने वाले वक्त में हमारी बहन-बेटियाँ महफ़ूज़ रह सकती है। अमन-चैन के साथ बेहिचक कहीं भी पढ़ने अथवा अन्य कार्य के लिए परिवार से दूर जा सकती है। मसलन इस चारित्रिक भ्रष्टतंत्र के खिलाफ़ आज आप सभी लोगों को आवाज़ उठानी पड़ेगी।।
No comments:
Post a Comment