Tuesday, October 24, 2017

जीवन दर्शन

जीवन में गतिशीलता कर्मण्यता का बोध कराती है जबकि विराम की अवस्था नश्वरता व अकर्मण्यता का भान कराती है। और भंगिमाएं तो क्षणभंगुर है ही । वरन चैतन्य का राह तो शाश्वत में ही तलाश किया जाना चाहिए। सांसारिक मरीचिका से निष्क्रमण प्राप्त करने हेतु वैराग्य का योग धारण करना पड़ता है। जीवत्व का विलक्षणता प्रचंड दारुण से उत्पन्न होता है। लुम्बनी के साम्राज्य का उत्तरदायित्व छोड़ सिद्धार्थ नामक मानव धरा के तीव्र स्पंदन केंद्र पर बोधिसत्व प्राप्त करता है। अपार करुणा, सहज प्रभाष, संवेदनशील हृदय व ओजस्विनी व्यक्तित्व से धनी वह मानव कालजयी गौतम बुद्ध बनता है। जीवन के उत्कृष्ट दर्शनों में से बोधिसत्व जैसे एक उत्तम मार्ग का वह चयन करता है और एक नए आध्यात्म व आस्था का पंथ रचता है। बौद्ध साहित्यकारों ने ऐसे साहित्य की रचना की है जिसमें बुद्ध के प्रेरणास्रोत विचारों व भारतीय इतिहास को प्रचुर मात्रा में संग्रहित किया गया है। प्रमुख ग्रंथों में से सुत, विनय व अमिधम्म को मिलाकर त्रिपिटक ग्रंथ का निर्माण किया है। इसकी भाषा,मंशा, अवबोधन आदि अनुपम है। इसी बौद्ध समाज की एक रचना अंगुत्तर निकाय भी है जिसे भदंत आनंद कोशल्यायन ने अनुवाद किया है। बौद्ध संघ, मिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होता हैं। सुत्त पिटक में बुद्धदेव के धर्मोपदेश हैं। यह सर्वस्व साहित्यिक विधाएं दिवित है। इसके माध्यम से जीवन के सार्वभौमिक एवं नैसर्गिक प्रवास का अनुशीलन किया जा सकता है।

सादर आभार। 🙏

Wednesday, October 11, 2017

कन्या समृद्धि से क्यों बौखलाता है सामंती मनोरोगी पुरुषार्थ समाज...

आज अंतराष्ट्रीय कन्या दिवस (International day of girls child)  है। आज कन्याओं के अप्रतिम व्यक्तित्व पर अनेकों क़सीदे गढ़े जाएंगे। आज के दिन क्या समाज के सभी लोग स्वयं के हृदय को टटोल सकते हैं कि वो नारियों को किशोरावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक के संघर्ष के विविध स्तर पर कितना संबल और आत्मविश्वासी बनाते हैं। हम किन-किन स्तर पर उनके सफलताओं का जश्न और असफलताओं पर मनोबल बढ़ाते हैं। हमारा पुरुषार्थ धार्मिक आस्था की तरह इतना कमज़ोर कैसे हो जाता है कि घर के भीतर से लेकर बाहर तक लड़कियों को उसके अधिकार देने से डरता है। हमारे समाज के भीतर लड़कियां जब भी अपने हक़, समानता, उदारता आदि की मांग करती है तब ये तथाकथित पुरुष अपने पुरुषार्थ को बचाने के लिए इन बालिकाओं को अश्लील शब्दों से नवाज़ने में जुट जाता है। हालांकि मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं प्राकृतिक प्रदत्त असमानताओं के चक्र को तोड़ने का पैरोकारी नहीं कर रहा हूँ किंतु पुरुष प्रभुत्ववादी समाज ने नारियों के दमन और शोषण के लिए जो अप्राकृतिक विभेद का स्वांग रचाया है उसे तो नष्ट किया जा सकता है। जो अधिकार पुरुषों को मिल सकता है वो अधिकार हम अक्सर महिलाओं के पक्ष में जाने पर क्यों तिलमिला जाते है। अव्वल सवाल तो यह है कि पुरुषों को यह अधिकार किसने दिया है कि वह महिलाओं के अधिकार को तय करे कि वो क्या पहनेगी, वह क्या खाएगी, वो कब और कहाँ जाएगी आदि। ये तथाकथित पुरुषार्थ के स्वयंभू अक्सर महिलाओं के स्वतंत्रता को देख क्यों बौखला जाते है। क्यों उन्हें महिलाओं के सफलता की दास्ताँ देख उनके अस्तित्व को ख़तरा महसूस होने लगता है। हाल की एक घटना बता रहा हूँ। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की ख़बर कई अखबारों व डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रकाशित होता है कि 'जेएनयू के पुरुष हॉस्टल में पड़ा छापा 13 लड़कियां हुई बरामद'। अब मुझे यह समझ नहीं आया कि इसमें बरामदगी का क्या फ़लसफ़ा है। वो सारी लड़कियां पढ़ी लिखी बालिग़ है। भारतीय कानून के आधार पर वह स्वतंत्र भी है। वह हॉस्टल में पढ़ाई-लिखाई अथवा नितांत निजी कार्य के लिए भी जा सकती है। यह न तो देशविरोधी गतिविधि है और न ही नैतिक विरोधी। किन्तु तथाकथित पुरुषार्थ मानसिकता ने इनके बॉयज हॉस्टल में मौजूदगी के ख़बर को बरामदगी में तब्दील कर दिया और उन्हें चारित्रिक नैतिकता का गुनहगार ठहरा दिया। ठीक उसी प्रकार दूसरी घटना हनिप्रीत के मामले में तस्दीक़ किया जा सकता है। हनिप्रीत के पूर्व पति का बयान जिसकी विश्वसनीयता भी संदिग्ध है उसके आधार पर देश के समस्त तथाकथित सामंती पुरुषार्थ मनोरोगी उसके चारित्रिक हनन में जुट गए। यहाँ तक कि कुछ राष्ट्रीय मीडिया भी ऐसे पुरूषार्थ मनोरोग का शिकार हो गया। उसने भी जम कर महिला हनिप्रीत के आबरू को ज़ार-जार किया। सोशल मीडिया से लेकर सोशल मैसेजिंग एप्प पर उसके संदर्भ में अश्लील ख़बरें और चुटकुलें फैलाई गयी। अभी तक न तो किसी आधिकारिक जांच में दोनों पिता-पुत्री के यौनिक संबंध की पुष्टि हुई है और न ही कबूलनामे पर दस्तख़त हुआ है। फिर किन आधार पर और किस अधिकार के साथ एक महिला के आबरू को शाब्दिक रूप से बालात्कार किया जाता है। यह उस महिला के नितांत निजी चयन का अधिकार है कि वह किसके साथ कैसा संबंध स्थापित करना चाहती है। लेकिन यह बात उस सामंती पुरुषवादी मनोरोगियों को कैसे पचेगा कि अब स्वतंत्रता के विकल्प का उपयोग महिलाएं भी करने लगी है। संयोग देखिये कि ये महिलाओं के अधिकार के समर्थन का दावा तो करते हैं किन्तु जब ये बीएचयू की लड़कियां अपने समानता, नैतिकता, सुरक्षा, सम्मान आदि का हक़ मांगती है तब उसके ऊपर हस्तास्त्र हमला कराया जाता है और उसे राजनीति से प्रेरित बताया जाता है। लाठी और गोला के ज़रिए प्रशासन उनके समानता के संवाद को कुचलती है। दरअसल यह सब होना महज़ कोई इत्तेफाक़ नहीं है बल्कि यह सामंती पुरुषार्थ की कुंठा है जो सदैव उन मनोरोगियों को महिलाओं के स्वतंत्रता से उनके अस्तित्व के ख़तरा को भान कराती है। लिहाज़ा इस पावन दिवस से आप आंतरिक शपथ लीजिये कि प्राकृतिक असमानताओं को छोड़कर अन्य सारे सामाजिक असमानताओं को कुचल कर नारियों के समानता व स्वतंत्रता का समर्थन करेंगे। आप अपने पुरुषार्थ का प्राधिकार उन्हें कभी महसूस नहीं होने देंगे कि जीवन के किसी भी कार्य के लिए उन्हें आपसे अनुमोदन करना पड़े। वह उनका निजी चयन होगा कि नारियां आपसे उस मसला विचार करना चाहती हैं या नहीं।
#नारी_शक्ति_बने_संबल

सादर विनम्र आभार।।

Monday, October 2, 2017

बापू को आभार पत्र...

प्रिय बापू (मोहनदास गांधी),
  सादर प्रणाम।
आपके बारे में जब पढ़ता हूँ, कुछ सुनता हूँ, आपको समझता हूँ तो ज़हन में एक ही सवाल उठता है कि 'बापू
आप न होते तो क्या होता'।। सबका तो नहीं पता, लेकिन बापू आप न होते तो शायद मैं एक मुखर आलोचक, लोकतांत्रिक व्यक्तित्व, यथार्थवादी साहसी बनने के लिए नैतिक साहस नहीं जुटा पाता। कुछ पढ़े-लिखे जाहिल डिग्रीधारीयों और ज़्यादतर कुंठाग्रस्त अनपढ़ों ने आपके खिलाफ न जाने कितनी झूठी और अश्लील भ्रामक तथ्यों को फैलाकर आपके व्यक्तित्व को दूषित करने का कोशिश किया। आपकी तस्वीरों को फ़ोटोशॉप के ज़रिये अश्लीलता के पराकाष्ठा पर पहुंचाने का पूर्ण सामर्थ्य लगाया गया। आप पर मुसलमान प्रेमी, हिन्दू विरोधी, नेहरू प्यार, जिन्ना सहारा होने का आरोप लगाया जाता है, जिसके ज़रिये आपके मान का मर्दन किया जाता है।  किंतु उन कुपमंडूको को यह नहीं पता कि आप गंगा की तरह पावन हैं जो समाज के कुछ जाहिलों के द्वारा मैला तो किया जाता है लेकिन उसकी महत्ता सदियों से अर्जित धरा को सदैव पावन करती है। आपके ऊपर कितना भी संगीन फ़र्जी आरोप मढ़ा जाता है लेकिन आपकी वैचारिक शीलता उसे नकार देती है। आप केवल मात्र एक व्यक्ति नहीं थे आप एक विचार हैं जो लाख प्रायोजित क्षति पहुंचाने के बावजूद भी आप सदियों तक जीवित रहेंगे। विडंबना तो यह लगता है बापू कि आपके जन्मदिवस के आधार पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है लेकिन जिस धरा पर आपने अपने प्राण न्योछावर किया वहाँ अहिंसा दिवस के स्थान पर स्वच्छ भारत का बिगुल फूंका जा रहा है। आपके व्यक्तित्व को समझकर ही एक तर्कवादी मनुष्य बनने के लिए प्रयत्नशील हुआ हूँ। और जो लोग आपके ऊपर छींटाकशी करते हैं, मैं उनको चुनौती देता हूँ कि वो सच्चे दिल से मात्र एक दिन-रात आपके जीवन को जियें और फिर वह अपने अनुभवों को साझा करें कि महात्मा गांधी का जीवन 24 घंटे के लिए जीना उनके लिये कितना आसान और कितना चुनौतीपूर्ण रहा। धरा के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में शुमार अल्बर्ट आंइस्टीन ने भी यह कहा था कि आने वाली पीढियों को यह यकीन नहीं होगा कि हाड़-माँस का यह व्यक्ति कभी पृथ्वी पर चला होगा। बापू केवल यह देश ही नहीं आपके व्यक्तित्व और विचार का कायल नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व आपका मुरीद है। आपके व्यक्तित्व का अप्रतिम आभूषण इस देश के ऊपर जड़ा है किन्तु आपके व्यक्तित्व को अपरिभ्रंस तले कुचलने की साज़िश निरंतर होती रहती है। विश्व के कुल 86 देशों में आपकी मूर्ति लगी है। कुल 148 देशों में आपके नाम का डाकटिकट चलता है। नेल्सन मंडेला ने आपके व्यक्तित्व से प्रेरित होकर अफ्रीकी रंगभेद के संघर्ष को ख़त्म किया। दर्जनों नॉबेल विजेता आपको अपना आदर्श मानते हैं। आइंस्टीन, टैगोर से लेकर मार्टिन लूथर किंग तक आपके प्रशंसक थे। लेकिन यह दुर्भाग्य है हम भारतीयों का कि हमने नज़दीक से भी आपको उस गंभीरता के साथ नहीं जाना जितना विदेशियों ने आपको समझा और जाना।। लेकिन अंततः मैं यही सोचता हूँ कि बापू आप ना होते तो क्या होता। क्या मैं निर्भीकता के साथ वो बातें अभिव्यक्त कर पाता जो आज करने की साहस रखता हूँ।

आपका मुरीद
प्रेरित कुमार।।