जीवन में गतिशीलता कर्मण्यता का बोध कराती है जबकि विराम की अवस्था नश्वरता व अकर्मण्यता का भान कराती है। और भंगिमाएं तो क्षणभंगुर है ही । वरन चैतन्य का राह तो शाश्वत में ही तलाश किया जाना चाहिए। सांसारिक मरीचिका से निष्क्रमण प्राप्त करने हेतु वैराग्य का योग धारण करना पड़ता है। जीवत्व का विलक्षणता प्रचंड दारुण से उत्पन्न होता है। लुम्बनी के साम्राज्य का उत्तरदायित्व छोड़ सिद्धार्थ नामक मानव धरा के तीव्र स्पंदन केंद्र पर बोधिसत्व प्राप्त करता है। अपार करुणा, सहज प्रभाष, संवेदनशील हृदय व ओजस्विनी व्यक्तित्व से धनी वह मानव कालजयी गौतम बुद्ध बनता है। जीवन के उत्कृष्ट दर्शनों में से बोधिसत्व जैसे एक उत्तम मार्ग का वह चयन करता है और एक नए आध्यात्म व आस्था का पंथ रचता है। बौद्ध साहित्यकारों ने ऐसे साहित्य की रचना की है जिसमें बुद्ध के प्रेरणास्रोत विचारों व भारतीय इतिहास को प्रचुर मात्रा में संग्रहित किया गया है। प्रमुख ग्रंथों में से सुत, विनय व अमिधम्म को मिलाकर त्रिपिटक ग्रंथ का निर्माण किया है। इसकी भाषा,मंशा, अवबोधन आदि अनुपम है। इसी बौद्ध समाज की एक रचना अंगुत्तर निकाय भी है जिसे भदंत आनंद कोशल्यायन ने अनुवाद किया है। बौद्ध संघ, मिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होता हैं। सुत्त पिटक में बुद्धदेव के धर्मोपदेश हैं। यह सर्वस्व साहित्यिक विधाएं दिवित है। इसके माध्यम से जीवन के सार्वभौमिक एवं नैसर्गिक प्रवास का अनुशीलन किया जा सकता है।
सादर आभार। 🙏
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