Wednesday, October 11, 2017

कन्या समृद्धि से क्यों बौखलाता है सामंती मनोरोगी पुरुषार्थ समाज...

आज अंतराष्ट्रीय कन्या दिवस (International day of girls child)  है। आज कन्याओं के अप्रतिम व्यक्तित्व पर अनेकों क़सीदे गढ़े जाएंगे। आज के दिन क्या समाज के सभी लोग स्वयं के हृदय को टटोल सकते हैं कि वो नारियों को किशोरावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक के संघर्ष के विविध स्तर पर कितना संबल और आत्मविश्वासी बनाते हैं। हम किन-किन स्तर पर उनके सफलताओं का जश्न और असफलताओं पर मनोबल बढ़ाते हैं। हमारा पुरुषार्थ धार्मिक आस्था की तरह इतना कमज़ोर कैसे हो जाता है कि घर के भीतर से लेकर बाहर तक लड़कियों को उसके अधिकार देने से डरता है। हमारे समाज के भीतर लड़कियां जब भी अपने हक़, समानता, उदारता आदि की मांग करती है तब ये तथाकथित पुरुष अपने पुरुषार्थ को बचाने के लिए इन बालिकाओं को अश्लील शब्दों से नवाज़ने में जुट जाता है। हालांकि मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं प्राकृतिक प्रदत्त असमानताओं के चक्र को तोड़ने का पैरोकारी नहीं कर रहा हूँ किंतु पुरुष प्रभुत्ववादी समाज ने नारियों के दमन और शोषण के लिए जो अप्राकृतिक विभेद का स्वांग रचाया है उसे तो नष्ट किया जा सकता है। जो अधिकार पुरुषों को मिल सकता है वो अधिकार हम अक्सर महिलाओं के पक्ष में जाने पर क्यों तिलमिला जाते है। अव्वल सवाल तो यह है कि पुरुषों को यह अधिकार किसने दिया है कि वह महिलाओं के अधिकार को तय करे कि वो क्या पहनेगी, वह क्या खाएगी, वो कब और कहाँ जाएगी आदि। ये तथाकथित पुरुषार्थ के स्वयंभू अक्सर महिलाओं के स्वतंत्रता को देख क्यों बौखला जाते है। क्यों उन्हें महिलाओं के सफलता की दास्ताँ देख उनके अस्तित्व को ख़तरा महसूस होने लगता है। हाल की एक घटना बता रहा हूँ। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की ख़बर कई अखबारों व डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रकाशित होता है कि 'जेएनयू के पुरुष हॉस्टल में पड़ा छापा 13 लड़कियां हुई बरामद'। अब मुझे यह समझ नहीं आया कि इसमें बरामदगी का क्या फ़लसफ़ा है। वो सारी लड़कियां पढ़ी लिखी बालिग़ है। भारतीय कानून के आधार पर वह स्वतंत्र भी है। वह हॉस्टल में पढ़ाई-लिखाई अथवा नितांत निजी कार्य के लिए भी जा सकती है। यह न तो देशविरोधी गतिविधि है और न ही नैतिक विरोधी। किन्तु तथाकथित पुरुषार्थ मानसिकता ने इनके बॉयज हॉस्टल में मौजूदगी के ख़बर को बरामदगी में तब्दील कर दिया और उन्हें चारित्रिक नैतिकता का गुनहगार ठहरा दिया। ठीक उसी प्रकार दूसरी घटना हनिप्रीत के मामले में तस्दीक़ किया जा सकता है। हनिप्रीत के पूर्व पति का बयान जिसकी विश्वसनीयता भी संदिग्ध है उसके आधार पर देश के समस्त तथाकथित सामंती पुरुषार्थ मनोरोगी उसके चारित्रिक हनन में जुट गए। यहाँ तक कि कुछ राष्ट्रीय मीडिया भी ऐसे पुरूषार्थ मनोरोग का शिकार हो गया। उसने भी जम कर महिला हनिप्रीत के आबरू को ज़ार-जार किया। सोशल मीडिया से लेकर सोशल मैसेजिंग एप्प पर उसके संदर्भ में अश्लील ख़बरें और चुटकुलें फैलाई गयी। अभी तक न तो किसी आधिकारिक जांच में दोनों पिता-पुत्री के यौनिक संबंध की पुष्टि हुई है और न ही कबूलनामे पर दस्तख़त हुआ है। फिर किन आधार पर और किस अधिकार के साथ एक महिला के आबरू को शाब्दिक रूप से बालात्कार किया जाता है। यह उस महिला के नितांत निजी चयन का अधिकार है कि वह किसके साथ कैसा संबंध स्थापित करना चाहती है। लेकिन यह बात उस सामंती पुरुषवादी मनोरोगियों को कैसे पचेगा कि अब स्वतंत्रता के विकल्प का उपयोग महिलाएं भी करने लगी है। संयोग देखिये कि ये महिलाओं के अधिकार के समर्थन का दावा तो करते हैं किन्तु जब ये बीएचयू की लड़कियां अपने समानता, नैतिकता, सुरक्षा, सम्मान आदि का हक़ मांगती है तब उसके ऊपर हस्तास्त्र हमला कराया जाता है और उसे राजनीति से प्रेरित बताया जाता है। लाठी और गोला के ज़रिए प्रशासन उनके समानता के संवाद को कुचलती है। दरअसल यह सब होना महज़ कोई इत्तेफाक़ नहीं है बल्कि यह सामंती पुरुषार्थ की कुंठा है जो सदैव उन मनोरोगियों को महिलाओं के स्वतंत्रता से उनके अस्तित्व के ख़तरा को भान कराती है। लिहाज़ा इस पावन दिवस से आप आंतरिक शपथ लीजिये कि प्राकृतिक असमानताओं को छोड़कर अन्य सारे सामाजिक असमानताओं को कुचल कर नारियों के समानता व स्वतंत्रता का समर्थन करेंगे। आप अपने पुरुषार्थ का प्राधिकार उन्हें कभी महसूस नहीं होने देंगे कि जीवन के किसी भी कार्य के लिए उन्हें आपसे अनुमोदन करना पड़े। वह उनका निजी चयन होगा कि नारियां आपसे उस मसला विचार करना चाहती हैं या नहीं।
#नारी_शक्ति_बने_संबल

सादर विनम्र आभार।।

No comments:

Post a Comment