शंख, पांचजन्य, कंबु, कंबोज, त्रिरेख, दीर्घनाद, बहुनाद, धवल, जलोद्भव, सुनाद, स्त्रीविभूषण आदि कई कीर्ति दी गयी है। प्राचीन साहित्य जड़ित कथाओं से लेकर कई किंवदंतियों व दंतकथाओं में इसके बहुप्रिय होने की लोकोक्तिय प्राप्त होता है।
प्राचीनतम साहित्य ग्रंथावली में से एक वेदग्रंथ 'अथर्ववेद' में एक सूक्ति प्राप्त होता है 'शंखेन हत्वा रक्षांसि' अर्थात शंख की ध्वनि से राक्षसों का नाश होता है। यजुर्वेद के एक प्रसंगानुसार समर में अरि (शत्रु) को हृदयाघात पहुँचाने के लिए शंखनाद करने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। भागवतपुराण के भी अधिकतम प्रसंगों में इसके उपयोगिता का संदर्भ प्राप्त होता है।
शंख का शंखनाद अद्भुत शौर्य, शक्तिवान व संबल का प्रतीक होता था। महाभारत युद्ध के रचयिता श्रीकृष्ण के एक कर में सदैव एक शंख रहता था। जिसे 'पांचजन्य शंख' कहा जाता है। इसकी विशिष्टता और अनूठापन तो अद्भुत था। शायद इसलिये ही यह महाभारत में विजय का प्रतीक बना। महाभारत के काल-खंड में हर हाथ में शंख हुआ करता था। श्रीमद्भगवद्गीता का एक श्लोक है:-
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।।
इस श्लोक का अनुवाद है 'अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक शंख था।'
उपरोक्त संकलित व संप्रेषित तथ्य तो पौराणिक साहित्यिक प्रसंग है। किंतु इस दिव्य वस्तु से कुछ स्वास्थ्वर्धित सार भी जुड़ा हुआ है जो मानव स्वास्थ्य को अधिक संबल बनाता है। जैसे में, मैं कुछ ऐसी स्वास्थ संबंधित लाभ को प्रक्षेपित करता हूँ जो मुझे शंख बजाने के लिए आकर्षित करता है।
शंख बजाने से आपके भीतर की नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता और आपके भीतर व आपके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का उद्गम होता है। उस सकारात्मक ऊर्जा से आत्मबल की वृद्धि होती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को फेफड़ों तथा गले के रोग नहीं होते है। शंख बजाने से चेहरे, श्रवण तंत्र, स्वसन तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंख वादन से, विवेक शक्ति, स्मरण शक्ति ज्ञान बढ़ती है व ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय होती है। शंख से मुख के अनेकों रोगों का नाश होता है। पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यह सब किंवदंती नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक कारण होता है।
इसलिए मैं शंखवादन की क्रिया स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रतिदिन व्यायाम के रूप में करता हूँ। शंख के वादन को केवल उपासना (पूजा-पाठ) क्रिया तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। क्योंकि मेरे इस क्रिया को कइयों ने जिज्ञासावश जानना चाहा कि आप बिना अर्चना किये कैसे बजा सकते है शंख तो केवल पूजा-अर्चना के दौरान किया जाता है। तब मैं उन्हें बहुत हर्षित होकर बताता हूँ कि हर वह तंत्र जिसका उपयोग अथवा अभिवादन करना तार्किक व स्वास्थवर्धक हो उसका प्रयोग निःसंकोच किया जाना चाहिए। उसे किसी भी प्रकार से निषेधात्मक प्रकृति में स्थापित नहीं किया जाना चाहिये। वरन यह तो मेरा निजी विचार है किंतु इसके अलावा अगर किसी वैदिक धार्मिक साहित्य में पूजा आयोजन के अलावा शंख फूँकने पर निषेध किया गया है तो मेरा ज्ञान वृद्धि करें। इसलिए इसे नित्यदिन योग, व्यायाम के संदर्भ में भी उपयोग करना अत्यधिक लाभकारी होता है।
सादर अभिनंदन।।
प्रेरित कुमार
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