Saturday, December 16, 2017

ज़ायरा पर छींटाकशी पितृसत्तात्मक ग्रंथि का बौखलाहट है..

आज फिर महिला सुरक्षा और समानता का अधिकार पितृसत्तात्मक मानसिकता के हाथों दम तोड़ दिया। मामला अभी प्रशासनिक अन्वेषण में है कि कश्मीरी स्थानिक ज़ायरा वसीम के साथ सच में आरोपी ने कामुकतापूर्ण उत्पीड़न किया है या नहीं। सारी कार्रवाइयाँ प्रशासकीय निर्देशन में की जा रही है। लेकिन देश के भीतर पितृसत्तात्मक दंभकारी सोच से कुंठित एक वर्ग ऐसा भी है जो बौखलाहट में ज़ायरा वसीम को कोस रहा है। अब जब किसी पुरुष नामक प्रजाति पर किसी महिला के द्वारा कामुकतापूर्ण उत्पीड़न का आरोप लगा है तो स्वाभाविक सी बात है उस बौद्धिक प्रवृति वाले लोगों का बौखलाहट में होना। क्योंकि वह आरोप न केवल किसी दानव के द्वारा किसी मानव के ऊपर कुंठा शांत करने का है बल्कि उस आरोप ने एक ऐसे सामंती एकाधिकार जड़ित सोच पर हमला किया है जिसने सदियों से अपने संकीर्ण मानसिकता को अव्वल बनाकर पूरे समाज पर थोपा है। आपको याद होगा जब दंगल फ़िल्म आई थी तब ज़ायरा वसीम को फ़िल्मी पर्दे पर आने को लेकर कश्मीर के कुछ तथाकथित लोगों ने ज़ायरा का मान मर्दन किया था। अनेकों वीभत्सता पूर्ण अश्लील शब्दों का उपयोग ज़ायरा के लिए किया था। तब पूरे देश ने उस वक़्त ज़ायरा का समर्थन किया था और उन कुपमंडूको के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद किया था। उस समर्थन के ज़रिए देश ने कश्मीरियों के दिलों में एक रुमानियत और मोहब्बत का जगह पाया था। उसने राजनौतिक असन्तुष्टियों के अविश्वास से निकलकर भारत के नागरिकों पर विश्वास किया था। किंतु आज कुछ तथाकथित पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोग जिस तरह से बिना किसी प्रशासनिक विवरण पाए ज़ायरा के ऊपर प्रख्याति तमाशा (पब्लिसिटी स्टंट) करने का आरोप लगा रहे है। उसे अन्य उपेक्षित क़सीदे, चुटकुलों और तंज़ के ज़रिए उसके व्यक्तित्व पर हमला कर रहे है, यह नैतिक दुर्बलता का परिचायक है। क्या पितृसत्तात्मक सोच का आख़री कूटनीति यही होता है कि जब उस सोच के संकीर्णता पर, उसके प्रभुत्व पर हमला हो तब आवाज़ उठाने वाले को चरित्रहीन अथवा अनैतिक करार कर दिया जाए। जो लोग इसे पब्लिसिटी स्टंट कह रहे है, क्या उनके पास इतना भी धीरज नहीं है कि वह प्रशासन के विवरण में जाँच के स्थितियों को स्पष्ट होने का इंतज़ार कर लें । क्या इस धीरज की कमी उस वर्ग के सदियों से ढ़ो रहे सड़ाँध और खोखले पितृसत्तात्मक सोंच पर हमले से बौखलाहट को प्रदर्शित नहीं करता है। इस सड़ाँध मानसिकता ने आज फिर उस नवजात विश्वास और मोहब्बत को नष्ट कर दिया। ज़ायरा वसीम केवल कश्मीर की बहन-बेटी नहीं है, बल्कि वह हर घर, हर परिवार में किसी अन्य नाम से बहन-बेटी के रूप में रहती है। जिसे हम सदैव सफल और सुरक्षित होने का आशीर्वाद देते है। फिर ज़ायरा के इस संघर्ष को पब्लिसिटी स्टंट कहना कितना सही है। कल को अगर ऐसी घटना किसी अन्य बहन-बेटियों के साथ हो जाए तो क्या तब भी वो लोग उन बहन-बेटियों पर ऐसे ही छींटाकशी करेंगे जिन शब्दों में आज ज़ायरा के साथ किया जा रहा है।

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