Saturday, August 25, 2018

प्यार कोई हार-जीत का खेल नहीं है ।

जहाँ प्यार बेशुमार होता है वहाँ तक़रार निश्चित है। दो प्रेमियों के बीच अक्सर लड़ाइयां होती रहती है। प्यार में लड़ाई होनी चाहिए। अगर में दो प्रेमियों के बीच कभी भी किसी बात को लेकर लड़ाई नहीं होती है तो समझिए कि दोनों के बीच प्यार नहीं है। बल्कि दोनों के बीच कोई एक कॉम्प्रोमाइज कर रहा है। या यूं कह लीजिए कि दोनों में से कोई एक प्रेमी पक्का दिमाग से रिश्ते निभा रहा है। जो कि प्यार का भविष्य घातक हो सकता है। प्यार में लड़ाई होनी चाहिए। क्योंकि प्यार शक्कर है और लड़ाई नमक। आखिर हैं तो सभी इंसान ही दिन-रात शक्कर से मन और जीवन दोनों भर जाएगा। फिर कभी भी शक्कर अर्थात प्यार करने का मन नहीं करेगा। जब भी आप प्रेमी की ओर देखेंगे जी उबा-उबा सा लगेगा। एक वक्त ऐसा आएगा जब प्यार और प्रेमी दोनों को छोड़कर आप भागना चाहेंगे। इसलिए प्यार को संतुलित बनाए रखने के लिए शक्कर और नमक अर्थात प्यार और लड़ाई रिश्ते को निभाने के लिए बहुत ज़रूरी है। हाँ जहाँ आप औपचारिक रिश्ते निभाते हैं वहाँ केवल शक्कर ही बने रहें, लेकिन प्यार तो इतने निजी रिश्ते होते हैं कि ये भनक दिल के अलावा दिमाग तक को नहीं लगती।
लेकिन प्यार है क्या। एक एहसास ही तो है जो खुद से खोकर होकर खुद में ही मिल जाता है। जब इंसान प्यार करता है तब वह अपने भीतर एक ऐसे चरित्र को पाता है जिससे वह पहले कभी मिला ही नहीं है। वह बेचैन हो उठता है कि यह तो मैं था ही नहीं जो मैं एक प्रेमी के तौर पर होता हूँ। दरअसल प्यार में इंसान दिल के बहाव में बहता चला जाता है। इसमें न तो कोई नफा-नुकसान का गुणनखंड देखता है और न ही कोई ख़रीद-फ़रोख्त का अलजेब्रा। इसलिए इंसान पहली बार अपने भीतर एक ऐसे शख्स को पाता है जिससे वह कभी मिला ही नहीं है। तभी तो मेरी एक मित्र हमेशा कहा करती थी कि 'प्रेरित प्यार में इंसान का कैरेक्टर बदल जाता है'। मैं उनकी बातों को अक्सर हँस कर टाल दिया करता था। लेकिन उनकी बातें बिलकुल सही थी। प्यार में सचमुच इंसान का कैरेक्टर बदल जाता है। प्यार में इंसान के हाव-भाव, सोचने के तरीके, जज़्बातों की कदर आदि कई तरीके की तब्दीली आती है। और यही सारी तब्दीलियाँ उस इंसान के कैरेक्टर को बदलकर एक प्रेमी बना देता है। लेकिन यदि प्यार की कोई परिभाषा तलाशने की कोशिश करता है तो उसका प्रयास व्यर्थ है। क्योंकि अक्सर नए-नए आशिक जल्दी से प्यार के तमाम एहसासों को छूने और उसे महसूस कर जीने की फ़िराक में लगे रहते हैं। जबकि प्यार एक ऐसी गहराई है जहाँ अगर आप सही मायने में उतरते हैं तो उस गहराई की कोई सीमा नहीं है। अर्थात उस प्यार का कोई आखिरी पड़ाव ही नहीं होता और उसके एहसास में दर्द और मरहम दोनों आपको स्वतः प्राप्त होते हैं। प्यार का एहसास तो ऐसा है कि 

"इश्क़ जब तुमको रास आएगा, ज़ख्म खाओगे मुस्कुराओगे, वो तुम्हें तोड़-तोड़ डालेगा, तुम टूट-टूट जाओगे, याद आएंगी गुमशुदा नींदें, ख़्वाब रख-रख के भूल जाओगे"।

हालांकि प्यार की एक ही शर्त होती है कि प्यार की कोई शर्त नहीं होती। लेकिन फिर भी प्यार में रिश्ते को संतुलित और ताउम्र बनाए रखने के लिए कुछ शर्तें होती है। जिसे लोग अक्सर नज़रअंदाज़ करते हैं और वही नज़रअंदाज़ उनके रिश्तों के टूटने की वजह होती है। दरअसल प्यार भले ही दो प्रेमियों के जज़्बातों का जुड़ाव होता है लेकिन उन दोनों के एहसास एक हो चुके होते हैं। दोनों के बीच की इमोशनल बॉन्डिंग और अटैचमेंट ही दोनों को एक बनाती है। प्यार की पहली शर्त, प्यार के स्पेस में कभी ईगो यानी की अहम की जगह नहीं होनी चाहिए। प्यार के स्पेस में प्यार के लिए ही जगह रहने दीजिए जहाँ प्यार के स्पेस में आप अपने ईगो को घुसाएँगे वहाँ वह ईगो आपके बीच के प्यार को खत्म कर ईगो भर देगा। और वही ईगो एक दिन आपके रिश्ते का कत्ल कर देगा। प्यार में स्वाभिमान होना चाहिए। दोनों को एक दूसरे के स्वाभिमान का सम्मान करना चाहिए लेकिन आपको स्वाभिमान और अहंकार के बीच बुनियादी फर्क को समझना आना चाहिए। दूसरी शर्त है कि आप असल में जो हैं वहीं रहा कीजिये, दिखावा उसके पास किया जाता है जहाँ फायदा उठाने की बात हो। दरअसल लोग जो अंदर से जो होते हैं वह वो दिखाने से बचते हैं ताकि उस रिश्तें में सबकुछ परफेक्ट दिखे। लेकिन उन्हें इस बात का जरा सा भी ध्यान नहीं रहता कि आप चेहरे पर नक़ाब लगाकर खुद को वहाँ छिपा सकते हैं जहाँ कुछ पल आपको गुजारने हैं न कि जहाँ आपको हर पल गुजारना है। आप खुद ही सोचिये कि जैसा व्यवहार आप ऑफिस में या किसी बिजनस मीटिंग के दौरान करते हैं क्या आप बिलकुल वैसे ही अपने घर पर भी व्यवहार करते हैं। नहीं न, फिर आप जो हैं वही आप अपने प्रेमी के सामने रहा कीजिये। अक्सर लोग अपनी प्रेमी/प्रेमिका को खोने के डर से बिलकुल उसी तरह व्यवहार करते हैं जैसा एक-दूसरे को पसंद आता है लेकिन जब आपकी असलियत नज़र आती है तो वही वज़ह आपके रिश्तों में दरार पड़ने की होती है। और सबसे आखरी बात जिसे रिलेशनशिप के दौरान सबसे ज़्यादा ख्याल रखना चाहिए वह यह है प्यार कोई खेल नहीं होता है और प्रेमी कोई खिलाड़ी नहीं। लेकिन अक्सर लोग ग़लती कर बैठते हैं और दोनों प्रेमी आपसी प्रतिस्पर्धा में लग जाते हैं। उनके लिए जीत का मतलब होता है अपने शर्तों पर झुका लेना या अपने मन मुताबिक काम करा लेना। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपनों से कैसी हार और जीत। अपनों के बीच के लिए जीत और हार का वजूद नहीं होता है बल्कि वह परायों के लिए होता है। आप तो उसी वक़्त हार चुके होते हैं जब आपके दिल की धड़कनों पर किसी और का राज हो चुका होता है। उसके दूर और पास होने से उसमें सुकून और घबराहट होने लगती है। जिंदगी में एक वही हार है जिसे जो जितना हारता है वो उतना ही विजयी बनता है। लेकिन प्रेमी अक्सर प्रेम में हार और जीत के खेल को रचने के चक्कर में चक्रव्यूह में उलझकर रिश्ते की हत्या कर देते हैं। 'ज़िंदगी के फ़लसफ़ा में भले ही जीत के अपने गुरुर हों, लेकिन प्यार में सामने वाले को जीताकर ही आप असली विजेता बनते हैं।' दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करते हैं कि बग़ैर एक पल भी दोनों अलग नहीं रह सकते। लेकिन जीतने के अहंकार में वह खुद को तड़पाकर वक़्त बर्बाद कर देंगे लेकिन "पहले मैं क्यों, पहले वो क्यों नहीं। हर बार मैं ही क्यों उसके सामने झुकूँ, वो मेरे सामने क्यों नहीं झुक सकता/सकती। क्या केवल उसके पास ही ईगो है, मेरी भी तो कोई सेल्फ रेस्पेक्ट है।" यही सब सोचकर एक अच्छे खासे रिश्ते की वो दोनों तिलांजलि दे देते हैं। और अगर कोई दूसरे को मनाने की कोशिश करता है तो इस झूठी जीत के चक्कर में जो एक प्रेमी दूसरे प्रेमी के कमजोरी का फायदा उठाने लगता/लगती है। लेकिन जो इस कमजोरी का फायदा उठाकर खुद को बड़ा साहसी विजेता मानने की कोशिश करता/करती है वह दरअसल प्रेम के भाषा को समझ ही नहीं पाते हैं। इसलिए अक्सर मुझे यह बातें सोचने को मजबूर कर देती है कि 

'यह मोहब्बत भी क्या चीज़ है न... जहाँ इंसान एक आदमी के लिए कमज़ोर होकर मर रहा होता है, वहीं दूसरा इंसान अपनी ताक़त दिखाकर मार रहा होता है'। इसलिए एक प्रेमी का विकल्प कोई दूसरा कभी नहीं हो सकता है। हर इंसान के भीतर कुछ ऐसी विशेष चीज़े होती है जो केवल उसके भीतर ही होती है। इसलिए आप निश्चित कुछ पल के लिए किसी और में खोकर उसे भूल सकते हैं लेकिन उसे हमेशा के लिए आप अपने दिल की धड़कनों और अपने दिमाग से नहीं निकाल सकते हैं।

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