Sunday, October 14, 2018

क्या देश के भीतर क्षेत्रवादी टकराहट गृह-युद्ध को जन्म दे सकती है?

उस मुल्क़ की कल्पना कितनी भयावह होगी। जब भीड़ ही न्याय और कानून को संचालित करने की संस्था बन जाए। भीड़ ही सत्ता और न्यायिक तंत्र के समानांतर खड़ी हो जाए। भीड़ ही लोकतंत्र को अधिग्रहित कर ले। भीड़ ही संविधान की प्रस्तावना से लेकर, तमाम अनुच्छेदों व अनुसूचियों को नष्ट कर दे। मेरे ख्याल से उस देश का भविष्य सीरिया,गाज़ा, इराक, बनाना रिपब्लिक से भी भयावह होगा। गुजरात में क्षेत्रवादी ताकतें भीड़ में तब्दील होने लगी है। बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों के नागरिकों को गुजरात से भगाया जा रहा है। पलायनवादियों को यह दलील देकर भगाया जा रहा है कि एक बिहारी ने किसी बलात्कार के घटना को अंजाम दिया है, इसलिए सभी उत्तर भारतीयों को भगाया जाए।


यही स्थिति बीते कुछ बरस पहले महाराष्ट्र में हुई जहाँ उत्तर भारतीयों पर बर्बरता के साथ हिंसक हमले हुए। उनके रोजी-रोज़गार के स्थाई स्रोतों को नष्ट किया गया। वहां क्षेत्रवादी अराजकों द्वारा दलील दी गई कि उत्तर भारतीय महाराष्ट्र में गंदगी फैलाते हैं। प्रदेश के हक़ को उत्तर भारतीय पलायन कर लूट लेते हैं। क्षेत्रवाद के नाम पर हिंसा फैलाने वाले अराजकों को हर बार राजनीतिक शह प्राप्त होती है। लेकिन इन घटनाओं को लेकर मेरी कुछ चिंताए, कुछ परामर्श और कुछ निजी विचार हैं। मेरी चिंता सबसे पहले गुजरात में उत्तर भारतीय को भगाने के संदर्भ में है कि हमलावरों ने दलील दी कि एक बिहारी ने बलात्कार किया है इसलिए इन्हें प्रदेश से भगाया जा रहा है। हमलावरों के दलील पर मेरे सवालनुमा चिंता यह है कि क्या किसी एक कुकृत्य करने पर उससे जुड़े पूरे जाती,धर्म, राज्य, राष्ट्र के तौर पर सम्बंधित हर शख्स को निशाना बनाया जाना चाहिए।

यदि नहीं तो फिर किसी एक बिहारी की वजह से पूरे उत्तर भारतीयों को बलात्कारी की संज्ञा देकर भगाना कितना न्यायसंगत है। और यदि हाँ तो फिर उसी गुजरात राज्य से ललित मोदी, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी भी नागरिक है फिर क्या हमलावरों के तर्क के आधार पर तमाम गुजराती नागरिकों पर संदेह करना न्यायसंगत है। मेरी नज़रों में तो बिलकुल नहीं। क्योंकि किसी इक्के-दुक्के के ओछापन की वजह से किसी समाज,धर्म, राज्य और राष्ट्र की गरिमा पर आँच नहीं आ सकती। लेकिन वज़ह शर्मनाक इसलिए भी प्रतीत होती है क्योंकि यह सारी स्थितियाँ राजनीतिक रणनीति के छाँव में तैयार की जाती है। क्षेत्रीयता के चेतनाओं को अन्य क्षेत्रीय नागरिकों के खिलाफ़ ज़हर फैलाकर एकत्रित करने की धारणा एक प्रगतिशील मुल्क़ के बर्बादी की सबसे बड़ी वजह होती है। किन्तु इस सम्पूर्ण संदर्भित विषय पर मैं संविधान की कुछ बुनियादी बातों का भी यहाँ ज़िक्र करना चाहूंगा।
संविधान के भाग 3 मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 15 में स्पष्ट तौर पर ज़िक्र किया गया है कि ‘राज्य किसी भी नागरिक से धर्म, मूल-वंश, जाती, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा’। अनुच्छेद 19A के D में स्पष्ट लिखा गया है कि ‘भारत के राज्यक्षेत्र में कोई भी कहीं भी घूम सकता है’। उसी अनुच्छेद के अगले भाग में रोजगार-व्यापार की स्वतंत्रता भी स्थापित की गई है। किन्तु मेरे विचार से संविधान के तमाम अधिकारों को खारिज़ कर क्षेत्रवाद की हिंसक चाशनी में देश को डुबोने की यह तरक़ीब भारत में आंतरिक युध्द को जन्म दे सकती है। यदि हर राज्य में बाहरी पलायन करने वाले नागरिकों को भगाना ही राज्य के तरक़्क़ी की प्राथमिकता बनने लगी, तो सर्व प्रथम संविधान के प्रस्तावना से ‘हम भारत के लोग’ को संशोधित कर अपने अनुसार राज्यों का ज़िक्र होना चाहिए।
जब देश और संविधान की धारणा राज्य पर हावी होते क्षेत्रवादी ताकतों के आगे बौनी दिखाई पड़ रही है और देश एवं संविधान की धारणा ही संशयात्मक है तो उसे भी हर स्तर पर संशोधित कर संघ-राज्य की मौलिक अधिकारों पर विमर्श करना चाहिए। क्योंकि गुजरात, महाराष्ट्र, असम, उड़ीसा, बंगाल आदि कई राज्यों से उत्तर भारतीयों पर हमला कर भगाया जा रहा है और पूर्व में भी भगाया जा चुका है। कतिपय, हर दौर में केंद्र की सरकार केवल मूकदर्शक का अभिनय करती रही है तो 1947 से टेरिट्री ऑफ इंडिया यानी भारत के राज्यक्षेत्र पर बनी धारणा एक फ़रेब नहीं तो क्या माना जाए। मसलन, पलायन न तो कोई बड़ी चुनौती है और न ही अनैतिक। वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन के दौर में राष्ट्रीय से लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर पलायन एक स्टेटस सिंबल मानी जाती है। फिर पलायन को किसी राज्य के लिए खतरा कैसे माना जाए।
गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, यूपी आदि के नाम पर क्षेत्रवाद की लड़ाई लड़ी जाती रही है जबकि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का प्राप्त संवैधानिक दर्जा के नाम पर सभी राज्य के नागरिक अनुच्छेद 370 और 35A को खत्म करना चाहते हैं। उनकी लगातार माँग रही है कि जम्मू-कश्मीर से इन दो अनुच्छेदों को हटाकर आम नागरिक के लिए व्यापार और आवास के राह खोले जाएं जिससे उस राज्य का अधिक विकास हो। उसी 370 के हटाने के वायदे पर कई दफ़ा सरकार बन जाती है। राष्ट्रवादी चेतनाएं जागृत हो जाती है। जबकि जिन राज्यों में यह अवसर प्राप्त है उन राज्यों में क्षेत्रवाद के नाम पर हिंसा और ज़हर फैलाने की तमाम साज़िशों के तहत अन्य राज्य के नागरिकों को भगाया जा रहा। इस दोयम चरित्र की राजनीति और उसके कार्यकर्ताओं की ऐसी देशविरोधी साज़िश के खिलाफ सरकार और न्यायालय को कठोर कार्रवाई करनी पड़ेगी अन्यथा मुल्क़ में गृहयुद्ध की आशंका बढ़ सकती है।

No comments:

Post a Comment