Thursday, May 25, 2017

आज़ादी के मायने

महान नाटककार व कुशल राजनीतिज्ञ, मानवतावादी व्यक्तित्व जार्ज बर्नार्ड शॉ ने अपने दौर में एक लाइन लिखी थी " Liberty means responsibility.That is why most people dread it." अर्थात "आज़ादी का मतलब ज़िम्मेदारी होता है,इसलिए लोग आज़ादी से कतराते हैं।" यहाँ आज़ादी का संदर्भ बौद्धिक व वैचारिक आज़ादी है। मसलन यही कुछ हालात आज हमारे देश के भीतर ज़्यादतर लोगों की हो चुकी है। वो नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, लोकतांत्रिक, संवैधानिक, एवं मौलिक ज़िम्मेदारीयों से मुक्त रहना चाहते हैं। इसका एक मात्र मुख्य कारण है वैचारिक गुलामी। वो अवधारणाओं के बीच दब कर विचारों के गुलाम हो चुके हैं और उस वैचारिक गुलामी के हाथों अपनी सारी स्वतंत्रता बेच चुके हैं। वो विचारों के गुलाम बने रहना चाहते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की आज़ादी स्वीकार नहीं है। क्यों ?
क्योंकि आज़ादी किसी भी प्रकार की हो विचारों की हो या सोच की हो, वो सिर्फ ज़िम्मेदारी लेकर ही आती है।और मौजूदा दौर में ज़िम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहता है।इसलिए ऐसे लोग अपने वैचारिक गुलामी के राजा की ही सिर्फ बातें सुनते है। ऐसे लोग देश, लोकतंत्र, संविधान के हितैषी होने दावा तो करते हैं लेकिन इनकी मंशा सिर्फ विचारधारा के संरक्षण को लेकर ही स्पष्ट होती है, अन्य सारी बातें कलिष्ट शब्दों के बीच संकुचित होकर रह जाती है। इन्हें देश की संवैधानिक संरचनाएं मंजूर नहीं है, इन्हें केवल वैचारिक महत्वकांक्षा स्वीकार्य है। शायद इसलिए ये अपना वोट देश की तरक्की के लिए नहीं बल्कि वैचारिक संप्रभुता के लिए देते हैं। आज देश के भीतर वैचारिक संघर्ष का शीतयुद्द चल रहा है। वैचारिक स्वतंत्रता घोर संक्रमण काल से गुजर रहा है। लिहाज़ा आपको इस बात का सनद रहे कि इस वैचारिक युद्द में जीत किसी भी हो लेकिन हारेगा केवल हमारा देश।

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