Tuesday, July 3, 2018

जहां भी हो 'तुम' मेरी हो...

निर्मोही सा मन जो तेरा तुझको ही बस कोसे है, दिल की धड़कन मन की व्यथा तुझको ही बस खोजे है। तन-मन में बस ध्यान जुटा है, कैसे तुम जी लेती हो, खुद को थामकर खुद में तुम कैसे खुश रह लेती हो। मनभावन दिल की धड़कन पर तेरा जब कोई ज़ोर नहीं है तो खुद को तुम ये बतलाओ कैसे ये सब कर लेती हो। हर बातों में बेअसर कह सब ख़ारिज कर देती हो, अंजान बने चुपके से सब आंखों से फिर क्यों कह देती हो।

बात सुनो अब तुम ये मेरी... धड़कन तुम हो, बातें तुम हो,  हर क्षण की अब साँसे तुम हो, कैसे मैं और क्यों बताऊँ न जाने अब सबकुछ तुम हो। तुम को मालूम हो या ना हो, सपनों में मैं हूँ या ना हूँ, बातों और ज़िक्रो में तुम्हारे हर क्षण अब मैं हूँ या ना हूँ। जज़्बातों की भाषा को न जाने कब समझोगी, प्यार भरे दो लफ़्ज़ों से न जाने कब सब हल कर दोगी। एक बात तुम्हें ये याद रहे कि हक़ से सब मैं करता हूं चाहे फिर वो प्यार रहे या चाहे फिर ललकार रहे। हक़ से करता हूँ, तुमसे करता हूँ, खुद की ये खुदगर्ज़ी है, फर्क नहीं पड़ता है सुनो जानेमन कि तुम भी उतना ही प्यार करती हो। दिल ने तुझको पसंद किया, दिल की तुम बस चाहत हो, दिल में ही तुम रहती हो, दिल की ही तुम अमानत हो। लेकिन सुनो जानेमन एक बात सुनो दिल की ये जज़्बात सुनो, प्यार,लड़ाई, गुस्सा, इश्क़ में जो भी होगा हो जाने दो, लेकिन 'तुम जहां भी हो तुम केवल मेरी हो' ।।

(ये सारनुमा कविता की पंक्ति मेरी आगामी पुस्तक की नवीन दृश्या है जिसे तीव्र संप्रेषित किया जाएगा)

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