Thursday, July 12, 2018

अब तू जाग जा !

तू भाग जा, अब तू जाग जा
तोड़ के बुनियाद को तू लाँघ जा
चटक-मटक के बातों को
जाग चुके जज़्बातों को अब फांद जा
तू फिरता है तू इधर-उधर
गलियों से लेकर शहर-शहर
नज़रों में तू ये झाँके है
अपने अंदर में ताके है
अब बोल ले, मन में सबकुछ तू सोच ले
जो भागा है वो भागेगा
कभी नहीं वो जागेगा
थककर एकदिन तू हारेगा
खुद को कोस कर मारेगा
जो था तेरा वो चला गया
जज़्बातों को निगल गया
अब जो है तेरे पास पड़ा
वो है यादों के साथ खड़ा
तू अपने अंदर के आग को पहचान जा
जो धधक रहा उसे जलने दे
चिंगारी को बढ़ने दे
जो आग की ज्वाला भड़केगी
रक्तो में तेरे फड़केगी
जो फड़क गया तो बढ़ जाएगा
और शांत पड़ा तो मर जाएगा
फिर चैन-सुकून को खोजेगा
आँखे बंदकर सोचेगा
बैशाख तेज़ दुपहरी होगी
उमस की शाम भरी होगी
रात की रौशन काली होगी
आंखों में रतजगा लाली होगी
लेकिन ये तू अब जान ले
दिल की बातों को मान ले
जो जागा है वो पायेगा
जो सोया है वो खोएगा
जो दोनों को छोड़े बैठा है
वो किस्मत पर ही रोयेगा
किस्मत पर था न तेरा ज़ोर कोई
कोशिश पर था न तेरा शोर कोई
अब चमक-चमक कर पूँछे है
क्यों तेरे अंदर ही वो जूझे है
रेत और पानी वो कण है
जो मुट्ठी से फिसलता है
कुछ न करने की चाहत
अच्छे खासे को निगलता है
तो तू कोशिश कर
कोशिश न हो तो तू मेहनत कर
लेकिन जो भी हो तू सबकुछ कर,
याद रख तू कर पाएगा
जुनून अंदर तू जगाएगा
एक बार जो तू जाग गया
तो अब सबकुछ तेरा होगा
अगर किस्मत ने भी साथ नहीं दिया
तो भावी इतिहास तेरा होगा।।

(ये पंक्ति रैपनुमा विद्रोही इंकलाब का बिगुल है। इस गद्दनुमा कविता के कई परिपेक्ष्य हैं आप इसे किसी भी परिपेक्ष्य में टटोलने की कोशिश करें, कुछ सार स्वयं जुड़ जाएंगे )

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