एक लोकतांत्रिक नागरिक के तौर पर मैं न तो राहुल गांधी का कभी आलोचक रहा और न ही कभी प्रशंसक रहा। लेकिन राहुल गाँधी के तेवर और उनके आत्मीयता को देख लगा कि राहुल गाँधी अब वाकई में परिपक्व हो चुके हैं। संसद के भरे जनसमूह में जब राहुल गाँधी ने डंके की चोट पर खुद को पप्पू कहने की बात को स्वीकारा और नफ़रत के बदले प्रेम करने की बात कही तो एक क्षण को लगा कि राहुल गाँधी ने अब जीवन में लोकतांत्रिक गरिमा को सीख लिया है। राहुल गाँधी ने साबित कर दिया कि आलोचनाओं की परवाह न करना ही आपके व्यक्तित्व को तराशता है, और उस निखार से व्यक्तित्व स्नेहिल और परिपक्व होता है। जिस स्नेहिल और सद्भाव के साथ राहुल ने पीएम मोदी को गले लगाया वह राहुल के विचारों का वर्णन करता है कि राहुल उस क्षण सभी राजनीतिक कुंठाओं से परे होकर पीएम को गले लगाया। एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष और राजनीतिक विपक्षी होने के बावजूद राहुल के लिए पीएम को गले लगाना कितनी बड़ी आंतरिक व राजनीतिक चुनौती रही होगी। लेकिन फिर भी तमाम राजनीतिक अन्तर्द्वंदों को दरकिनार राहुल ने पीएम को गले लगाकर भारतीय लोकतंत्र के उत्कृष्ट संभावनाओं के खूबसूरती की नई इबारत लिख दी। यह तस्वीर आज के लोकतांत्रिक स्थिति में एक वैचारिक तृप्ति की भूमिका निभाएगी। राहुल के इस भाव को देख महसूस हुआ कि नेहरू के असली विरासत का एहतराम राहुल ने ही किया है, जो बीते 54 बरसों से लोकतांत्रिक दहलीज से लुप्त हो चुका था। लोकतांत्रिक नेहरू के छवि की यह परंपरा न तो इंदिरा गाँधी में दिखी और न ही राजीव गाँधी में जिसे आज राहुल ने पुनः प्रतिस्थापित किया। किन्तु तस्वीरों के ज़रिए यदि आप उस स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे तो देखेंगे कि पीएम मोदी के लिए वह स्थिति असहज थी। पीएम की भाव-भंगिमा से यह साफ पता चलता है कि या तो वह क्षण पीएम मोदी के लिए आकस्मिक रहा होगा जिसको लेकर वह गले मिलने के दौरान असहज रहे अथवा राजनीतिक व वैचारिक दबाव ने पीएम को गले मिलने के अलौकिक सुख से वंचित रख दिया। पीएम के असहजता का कोई भी कारण रहा हो लेकिन आज राहुल ने तमाम अलोकतांत्रिक धरणाओं की बंदिशों को तोड़कर भारतीय लोकतंत्र में एक नए धारणा को स्थापित किया है। बीते बरसों से राहुल गाँधी का निरंतर मान-मर्दन किया गया है। कभी उनके बोलने की शैली को लेकर तो कभी उनकी भाषा को लेकर। लेकिन राहुल ने स्वयं को गाँधी-नेहरू की तरह उस पलटवार करने के बजाय अपने लक्ष्य और कार्य पर ध्यानमग्न रखा। शायद इसी वजह से आज भारतीय जनमानस में राहुल की छवि में साफ़गोई नज़र आई। अपने ही सरकार में कैबिनेट के अध्यादेश को फाड़कर निरस्त करने की मांग करने का साहस राहुल गाँधी ही कर सकते थे तभी तो उन्होंने पीएम मोदी के तमाम आलोचनाओं का बाद भी पीएम को गले लगाकर स्नेह व संवेदना के स्पंदन से पीएम को भर दिया।
अब प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह तय होगा कि राहुल की यह पहल ने पीएम के भीतर की आत्मीयता को जागृत किया अथवा पीएम के वैचारिक विरोध ने इस पहल को खारिज़ कर दिया। लेकिन लोकसभा के भीतर इस अनुपम स्थिति को देख एक नए धारणा का जन्म हुआ कि अब अपने भाषण में पीएम मोदी
जितना राहुल पर शाब्दिक हमला करेंगे राहुल का व्यक्तित्व उतना गुना अधिक दृढ़ और परिपक्व होता जाएगा।।
अब प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह तय होगा कि राहुल की यह पहल ने पीएम के भीतर की आत्मीयता को जागृत किया अथवा पीएम के वैचारिक विरोध ने इस पहल को खारिज़ कर दिया। लेकिन लोकसभा के भीतर इस अनुपम स्थिति को देख एक नए धारणा का जन्म हुआ कि अब अपने भाषण में पीएम मोदी
जितना राहुल पर शाब्दिक हमला करेंगे राहुल का व्यक्तित्व उतना गुना अधिक दृढ़ और परिपक्व होता जाएगा।।
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